दीपक सेवदा की कलम से राजस्थान में आज से करीब चालीस साल पहले की बात करते है तो उस समय ग्रामीण क्षेत्र के हर घर में अखंड अग्नि हुआ करती थी...
दीपक सेवदा की कलम से
राजस्थान में आज से करीब चालीस साल पहले की बात करते है तो उस समय ग्रामीण क्षेत्र के हर घर में अखंड अग्नि हुआ करती थी।चूल्हे की आग के अंगारों को कभी बुझने नही दिया जाता था।सुबह से शाम तक तो वैसे ही चूल्हा जलता रहता था।क्योंकि उस समय संयुक्त परिवार हुआ करता थे।अधिक लोगो के खाना पकाने के लिए दिन भर चूल्हे की आग बुझती नही थी।बुजुर्ग लोग बताते है कि रात्रि में खाना पकाने के बाद चूल्हे में अग्नि के अंगारो को राख में बिना जले उपलों के साथ इस कदर ढक दिया जाता था कि रात भर उसमें आंशिक रूप से जीवित अंगारे बना रहें।
सुबह उन्ही अंगारो से पुन: आग प्रज्जवलित कर दी जाती थी।अलबत्ता तो कभी भी चूल्हे में आग बुझने ही नही दी जाती थी।मगर किसी कारणवंश आग बुझ भी जाती तो चूल्हे में पुन: आग जलाने के लिए पडौसी के घर (लोहें की बनी) कुड़सी लेकर आग लाने के लिए जाना पड़ता था।अगले घरवाली मालकिन भी पहले तो अपने घर की अखंड अग्नि को देना नही चाहती थी और बाद में देने के लिए तैयार भी होती तो वह इस शर्त पर कि आग लेने आई महिला को चूल्हे में से आग के अंगारे पड़ौसिन की कुड़सी में लेने के बाद उनमें से कुछ अंगारे वापस उसी चूल्हे में डालती थी।
ऐसा करने के पीछे उनकी मान्यता होती थी कि इससे हमारे चूल्हे की अग्नि की अखंडता बनी रहे। उस जमाने के सभी लोग अग्नि को देवता मानते थे।अग्नि का आदर करते एवं बड़े जतन के साथ उसे ढक कर रखते थे शायद इसी कारण अग्निकांड की घटनाएं भी उस जमाने कम हुआ करती थी। संयोगवंश कभी किसी की ढाणी में आग लग भी जाती थी तो बाद में सभी लोग कहते थे कि फलां जगह एक ढाणी ठंडी हो गई।यानि ढाणी तो जलकर गर्म हुई लेकिन अग्निदेव कुपित न हो इसलिए ढाणी को ठंडा होना बोलते थे।आज माचिस के अधिक प्रचलन के कारण यह अखंड अग्नि समाप्त हो गई है। जिससे आग लगने की संभावना हमेशा बनी रहती है।अधिकांश अग्निकांड होते भी ऐसे है।बाद में कहा जाता है कि आग लगने का कारणों का पता नही चला आजकल देखने को मिलता है कि ज्यादातर अग्निकांड गर्मी के मौसम में ही होते है जिसका कारण यह होता है कि खाना पकाने के बाद चूल्हे में आग यूं ही खुली छोड़ दी जाती है बाद में तेज हवा के कारण अंगारे की चिंगारी हवा के साथ उड़कर घास फूस से बने छप्पर में घुस जाती जिससे आग लग जाती थी।
इस प्रकार असावधानी के कारण एक छोटी सी चिंगारी विकराल आग का रूप धारण कर लेती है इससे तो आज के पढे लिखे लोगो से पुराने जमाने के वें अनपढ लोग भी ज्यादा समझदार होते थे जो आग से इस कदर अपनी सुरक्षा भी कर लेते थे व अग्नि के अंगारो को कभी बुझने भी नही देते थे।उन लोगो की मान्यता थी कि चूल्हे की अग्नि ओर परिण्डे का पानी कभी समाप्त नही होना चाहिए जिससे कि घर में सुख सौभाग्य बना रहे।
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