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घट सकती हैं 100 जरूरी दवाओं की कीमते

नई दिल्लीः हाइपरटेंशन, तनाव, एड्स, निमोनिया ये बीमारियां जितना डराती हैं उतनी ही दहशत इनके इलाज पर होने वाले खर्च से भी होती है लेकिन अब आप...


नई दिल्लीः हाइपरटेंशन, तनाव, एड्स, निमोनिया ये बीमारियां जितना डराती हैं उतनी ही दहशत इनके इलाज पर होने वाले खर्च से भी होती है लेकिन अब आपको चिंता करने की कोई बात नहीं है। दवाओं की कीमत तय करने वाली संस्था नैशनल फॉर्मासुटिकल प्राइसिंग ऑथारिटी (एन.पी.पी.ए.) अब टॉप ब्रांड्स की लगभग 100 दवाओं की कीमत कम करने जा रही है।

एन.पी.पी.ए. की योजना है कि डॉक्टरों द्वारा बताई गई दवाएं, उनकी डोज की मात्रा, पावर सभी को इस प्राइस कंट्रोल की प्रक्रिया में शामिल किया जाए। टैबलेट के साथ कैपसुल्स की भी कीमतें काबू में लाई जाएंगी। गौरतलब है कि एन.पी.पी.ए. ने इससे पहले 2011 में भी इसी तरह की पहल की थी जब उसने 108 दवाओं की कीमत कम करने का फैसला किया था।

हालांकि दवा कंपनियां इस मामले में अदालत तक गई और इस फैसले को रद्द करना पड़ा। अधिकारिक सूत्रों की मानें तो इस बार केंद्र में स्थिर सरकार है और कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में कोई भी इस फैसले का खुलकर विरोध नहीं करेगा। फिलहाल सरकार द्वारा नियंत्रित दवाओं की संख्या सिर्फ 348 है।

इस लिस्ट में सिर्फ निश्चित डोज और स्ट्रेंथ और कॉम्बिनेशन ही शामिल है। इसमें भी कई तरह के चोर दरवाजे निकाल कर कंपनियां मनमाने तरीके से कीमत वसूलती हैं। एन.पी.पी.ए. के इस फैसले से दवा कंपनियां खासा परेशान हैं। इंडियन फॉर्मसुटिकल एलायंस के महासचिव डीजी शाह इस मसले पर कहते हैं, ''लोग जिन दवाओं का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं उन्हें सस्ता कर दो यह कोई तार्किक बात नहीं है। दवाओं के चयन का फैसला अगर विशेषज्ञों के पैनल से कराया जाए तो बेहतर रहेगा। एन.पी.पी.ए. का काम सिर्फ नियम बनाना है इस तरह का भ्रम फैलाना नहीं।'' एन.पी.पी.ए. ने इस मसले में मरीजों और दवा निर्माताओं से भी राय मांगी है।

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