भट्टा खान रानीगाँव -आज कल पत्रकारिता के मायने बदल गये है।ये काम लोगो की नजर मैं एक पहेली बन गया है। आज आये दिन मीडिया कर्मियो पर हमले उनकी...
भट्टा खान रानीगाँव
-आज कल पत्रकारिता के मायने बदल गये है।ये काम लोगो की नजर मैं एक पहेली बन गया है।
आज आये दिन मीडिया कर्मियो पर हमले उनकी हत्या आदि होना एक आम बात हो चली है।
पत्रकार जो राष्ट्र की मिठी एव सरल ताकत है।
जिसका हथियार कोई चाकू छुरी नहीं बल्की एक कलम है।जो हमारे समाज तथा आने वाली पीढ़ियो
को नया आईना दिखाती है।
आज इनकी सुरक्षा एक अनदेखा थोर मुद्दा है
अगर कोई पत्रकार किसी बड़ी हस्ती की पोल समाज के सामने खोलता है।तो उसे मारने की धमकिया मिलती है।
उसके ऊपर हमले होते है।यहाँ तक की धर्म की
धर्म के नाम पर भी पत्रकार ही पिस्ते है।ईराक
जैस देशो आतँकवादी अपनी मांग सरकार तक पहुचाने के लिए पत्रकार को ही अपनी ढ़ाल बना ले रहे है।पत्रकारो को बंदी बना कर।
अगर उस देश की सरकार उन की मांग पूरी नहीं करती तो बंदी पत्रकारो के सर कलम कर दिए जाते
है।परन्तु अगर किसी नेता या की बड़ी हस्ती के साथ ऐसा हो।तो सब की आँखे खुल जाती है।परन्तु पत्रकार मरे या जिये बाकि लोगो को इससे क्या हा उनकी कोई पोल खुलने वाली थी वो दब गई। बात यहाँ तक नहीं थमती आम लोग भी पत्रकार को एक मोहरा बना कर देखती है।आज के वक् मैं पत्रकार की हमारे समाज को शख्त जरूरत है।
उनके कलम की खिची रेखा लक्ष्मण रेखा है।एक नई पीडी के लिए सरकार को मिडिया कर्मियो पर हो रहे हमलो के बारे सतर्क रहना होगा।
-आज कल पत्रकारिता के मायने बदल गये है।ये काम लोगो की नजर मैं एक पहेली बन गया है।
आज आये दिन मीडिया कर्मियो पर हमले उनकी हत्या आदि होना एक आम बात हो चली है।
पत्रकार जो राष्ट्र की मिठी एव सरल ताकत है।
जिसका हथियार कोई चाकू छुरी नहीं बल्की एक कलम है।जो हमारे समाज तथा आने वाली पीढ़ियो
को नया आईना दिखाती है।
आज इनकी सुरक्षा एक अनदेखा थोर मुद्दा है
अगर कोई पत्रकार किसी बड़ी हस्ती की पोल समाज के सामने खोलता है।तो उसे मारने की धमकिया मिलती है।
उसके ऊपर हमले होते है।यहाँ तक की धर्म की
धर्म के नाम पर भी पत्रकार ही पिस्ते है।ईराक
जैस देशो आतँकवादी अपनी मांग सरकार तक पहुचाने के लिए पत्रकार को ही अपनी ढ़ाल बना ले रहे है।पत्रकारो को बंदी बना कर।
अगर उस देश की सरकार उन की मांग पूरी नहीं करती तो बंदी पत्रकारो के सर कलम कर दिए जाते
है।परन्तु अगर किसी नेता या की बड़ी हस्ती के साथ ऐसा हो।तो सब की आँखे खुल जाती है।परन्तु पत्रकार मरे या जिये बाकि लोगो को इससे क्या हा उनकी कोई पोल खुलने वाली थी वो दब गई। बात यहाँ तक नहीं थमती आम लोग भी पत्रकार को एक मोहरा बना कर देखती है।आज के वक् मैं पत्रकार की हमारे समाज को शख्त जरूरत है।
उनके कलम की खिची रेखा लक्ष्मण रेखा है।एक नई पीडी के लिए सरकार को मिडिया कर्मियो पर हो रहे हमलो के बारे सतर्क रहना होगा।
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